नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥ वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ हाथो में त्रिशूल लिए है गले में है सर्पो की माला त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ https://bookmarkusers.com/story18170399/a-review-of-shiv-chalisa-in-hindi
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